डॉ. शम्भू शरण गुप्त-

भावों और विचारों की संवाहिका होने के साथ-साथ देश एवं संस्कृति की पहचान होती है भाषा। किसी भी राष्ट्र की भाषा में उसकी पहचान और गौरव भी समाहित होती है। भाषा किसी भी देश के उदात्त भावों एवं वैचारिकी के साथ संस्कृति की सोंधी गंध को अभिव्यक्त करती है। देश की पहचान उसकी संस्कृति से होती है, परंपराओं से होती है, स्थापित मूल्यों के मानदंडों से होती है। संस्कृति और मूल्यों को भाषा अपने में पिरोती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा के संबंध में कहा है कि ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बात-चीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है। हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमान्न लिपि का व्यवहार यहां हो ही नहीं सकता।’
भाषा सबसे पहले अन्य लोगों के साथ आपके अपने होने का माध्यम है
हिंदुस्तान की राष्ट्रीय चेतना, जन-संवेदना, लोक-भावना, जन-संस्कृति को ठीक-ठीक पढ़ने और समझने के लिए हिंदी भाषा ही सर्वोत्तम माध्यम है। भाषा के बारे में प्रख्यात साहित्य समालोचक टेरी ईगलटन कहते हैं कि ‘भाषा सबसे पहले अन्य लोगों के साथ आपके अपने होने का माध्यम है। काम करा ले जाने का माध्यम वह उसके बाद है।’ भाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए प्रो. चन्द्रकला पाडिया कहती हैं कि – ‘राष्ट्र निर्माण में भाषा की क्या भूमिका हो सकती है। वह हमें चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों से सीखना चाहिए।’ ऐसे में हिंदी दिवस आने पर हिंदी के लिए हम सबको एक आत्म-सम्मान और गौरव की अनुभूति होती है। कारण साफ है कि हिंदी की ज्ञान-परंपरा का निर्माण संस्कृत-साहित्य के साथ-साथ लोकभाषाओं, संतों, सूफियों, और भक्ति आंदोलन तथा नवजागरण के साथ हुआ है।

हिंदी-नवजागरण की सबसे प्रमुख विशेषता हिंदी-प्रदेश की जनता में स्वातंत्र्य-चेतना का जाग्रत होना है
समाज और देश की दशा के विचारक भारतेंदु हरिश्चंद्र, हिंदी भाषा के कथा शिल्पकार मुंशी प्रेमचंद, हिंदी के महान साहित्यकार, पत्रकार और युग प्रवर्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, हिंदी और मैथिली भाषा के अप्रतिम लेखक और कवि बाबा नागार्जुन, और प्रगतिशील हिंदी समीक्षक रामविलास शर्मा जैसे लेखकों ने किया है। हिंदी नवजागरण से अभिप्राय सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत के हिंदी प्रदेशों में आये राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जागरण से है। हिंदी-नवजागरण की सबसे प्रमुख विशेषता हिंदी-प्रदेश की जनता में स्वातंत्र्य-चेतना का जाग्रत होना है।
हिंदी लगभग 55 करोड़ लोगों की भाषा है और लगभग 1200 सालों के विकासों की देन है
हिंदी लगभग 55 करोड़ लोगों की भाषा है और लगभग 1200 सालों के विकासों की देन है। इसे समावेशी भारतीय संस्कृति तथा विश्व के ज्ञान भंडार से अलग नहीं किया जा सकता। महात्मा गांधी ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजी के महत्त्व को नकारते हुए हिंदी को प्रतिष्ठित की वकालत करते रहें। हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाना गांधीजी जी की निर्भीकता द्वारा ही संभव था। कहना न होगा कि इसपर जो लोग एकरेखीय ढांचा और संकुचित इतिहास थोप रहे हैं, वे हिंदी को ‘कूप जल’ बना रहे हैं। हर राष्ट्रीय भाषा अपने देश की आत्मा को जानने का द्वार है। इसका जीता जागता उदाहरण 19वीं शताब्दी के पूर्व में भारतीय कला तथा उद्योग-धंधों को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नष्ट कर देने से समस्त भारतीयों पर निर्धनता का साम्राज्य के रूप में हमारे पूर्वज देखे थे। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति समाप्त कर दिया गया था। परंतु कुछ बुद्धिमान एवं उदार अंग्रेजी शासकों और ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के महत्त्व और उपयोगिता का अनुभव किया। यद्द्पि कुछ यूरोपियन शिक्षा का विरोध कर रहे थे।

हमें हिंदी पर गर्व की अनुभूति होती है
हिंदी राजभाषा के स्तर के कारण जितनी वह राजभाषा है उससे अधिक बदनाम है। दरअसल असली राजभाषा या सत्ता की भाषा तो अंग्रेजी है। ऊंचे पदों पर जाने वाली सारी शिक्षा अंग्रेजी में दी जा रही है। हिंदी पढ़ने वाले आमतौर पर सिर्फ मास्टर या अनुवादक बनते हैं। हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं, हिंदी समाचार चैनलों, रेडियो आदि पर हिंदी के प्रभाव को हिंगलिश के रूप में देखने को मिलता है। इससे भी आगे की बात करें तो हिंदी भाषा का इस्तेमाल मन को मोह लेने वाली मायावी विज्ञापन के रूप बाजरवाद के तहत किया जा रहा है। इससे हमें हिंदी पर गर्व की अनुभूति होती है, पर उसकी वास्तविक हालत बहादुर शाह जफर की है जो नाममात्र का बादशाह था। हिंदी का दर्द भी जफर के दर्द- सा है।
राष्ट्र की उन्नति के लिए भाषा की उन्नति जरुरी
तत्कालीन राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद द्वारा मातृ भाषा के बारे में दी गई वाक्य याद आती है कि – “राष्ट्र की उन्नति के लिए भाषा की उन्नति जरुरी। पर हिंदी का स्थान जैसा होना चाहिए; वैसा अपने ही देशा भारत में नहीं बन सका। हम हिंदी को चारागाह समझते हैं, इसमें जीते नहीं हैं। एक भाषा में जीने का अर्थ है, उसके उच्च मूल्यों और सुंदरताओं से जुड़ी संस्कृति में जीना। अपने ‘मैं’ के बाहर भी सोचना, सम्पूर्ण देश-दुनिया के बारे में सोचना। वस्तुतः तभी अपनी भाषा में विस्तार आता है। छोटा मन लेकर महान भाषा का निर्माण नहीं हो सकता। हमे ऐसा महसूस होता है कि इसके लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय भाषा की अपरिहार्यता को स्वीकार करना चाहिए और इसके लिए हम सभी को कि शिक्षा का माध्यम स्वभाषा हिंदी को अपनाना होगा। तभी हमारी हृदय, लोक, संत, सूफी, भक्ति आंदोलन तथा नवजागरण काल के हिंदी महानायकों को सच्ची श्रद्धांजली होगी और हिंदी को उसका वही स्थान पुनः वापिस मिलेगी। क्योंकि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं बल्कि वह स्वयं ही एक अभिव्यक्ति है।
हिंदी भाषा को हमें राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ पुनः जोड़ना होगा
भाषा के एक-एक शब्द, वाक्य रचना, मुहावरों आदि के पीछे समाज के जीवन की अनुभूतियाँ, राष्ट्रीय घटनाओं का इतिहास छिपा हुआ है। यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर हिंदी भाषा को हमें राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ पुनः जोड़ना होगा; न कि अंग्रेजी को हटाना; और न अंग्रेजों के गुण और लाभ की रट लगा लेने से कोई लाभ होगा। जैसा कि आम जन के निगाहों में हिंदी को फिल्मों, गीत-संगीत और टीवी धारावाहिकों की भाषा से अधिक नहीं समझा जाता। हिंदी में जिस तरह वीर रसात्मक और हास्यास्पद कवि सम्मेलन होते हैं, दूसरी किसी भाषा में नहीं होते। जो लोग हिंदी नहीं समझते, वे सिर्फ हिंदी गानों और म्यूजिक की वजह से हिंदी को जानते हैं। कई बार लगता है कि हिंदी सिर्फ इसलिए सुरक्षित है कि यह मनोरंजन उद्योग की भाषा है। साहित्य की किताबें और पत्रिकाएं पढ़ने की सबसे कम रुचि हिंदी लोगों में है। यदि नेताओं, मीडिया एंकरों और इधर की युद्धात्मक बहसों की हिंदी देखें तो अपशब्दों और कुतर्कों से सबसे अधिक प्रदूषित हिंदी भाषा हुई है।
हिंदी दिवस जरूर मनाइए…
भोजपुरी हिंदी भाषा की एक सहायक बोली के रूप सदैव साथ रहती है, लेकिन कुछ भोजपुरी गायकों द्वारा गए अश्लील गानों की वजह से भी हिंदी दूषित हुई है। आजतक डिजिटल माध्यम के अनुसार बिहार में सार्वजनिक स्थानों पर गानों के नाम पर अश्लीलता के खिलाफ सरकार के सख्त कदम नजर आए हैं। भोजपुरी एक्टर और बीजेपी सांसद रवि किशन ने भोजपुरी सिनेमा से अश्लीलता को हटाने के लिए एक मुहिम शुरू की थी। वर्तमान उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी भोजपुरी फिल्मों में अश्लील दृश्यों और गानों पर सख्ती के साथ अनुदान न देने की बात कह चुकी है। यह हिंदी के विकास और विस्तार के लिए दुख की बात है या इस भाषा के गौरव का प्रश्न चिन्ह लगने जैसा है। इसपर विचार करना चाहिए। हिंदी दिवस जरूर मनाइए, लेकिन सोचना ऐसी चीज नहीं है, जिसे हम भूल जाएं।
( लेखक महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ इंफार्मेशन टेक्नॉलॉजी के स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म एंड मास कम्यूनिकेशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. )