अजय कश्यप।
धार्मिक आयोजन, अनुष्ठान या ऐसे ही पवित्र अवसरों पर धोती कुर्ता पहनने की परम्परा है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से धोती कुर्ते की रीति चली आ रही है। दरअसल धोती पारंपरिक भारतीय परिधान है जो अब सामान्यतः धार्मिक आयोजनों, गांवों में तथा शादी-विवाह तथा अन्य अनुष्ठानों में ही दिखता है। धोती धारण करना सिर्फ एक वेशभूषा ही नहीं है, बल्कि धोती धारण करने का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। आचार्य डॉ उमा चरण मिश्र जानकारी देते हैं कि धोती भगवान विष्णु का स्वरूप है। यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान में धोती धारण करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं। समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। धोती भारतीय धार्मिक परम्परा की प्रतीक है। इसे धारण करने मात्र से ही मन शुद्ध हो जाता है। सुविचार मन को पवित्र करने लगते हैं।

नोएडा के महर्षि वैदिक परिसर में चल रहे श्री विष्णु सर्व अद्भुत शांति महायज्ञ के यज्ञ मंडप में भी भारतीय संस्कृति के अनुरूप पुरुषों के लिए सिर्फ धोती कुर्ता और महिलाओं को साड़ी वेशभूषा में ही प्रवेश करने की अनुमति है। यहाँ सभी लोग धोती-कुर्ता धारण करने की प्राचीन भारतीय संस्कृति और परम्परा का बखूबी पालन और अनुसरण करते नजर आ रहे हैं।
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धोती सम्पूर्ण हिन्दू समुदाय में अपने विभिन्न नामों तथा पहनने के ढंग के कारण काफी व्यापक है। उदाहरण के रूप में तमिलनाडु और बिहार के पहनने की शैली भिन्न है। हिन्दी तथा कुछ अन्य उत्तर और मध्य भारतीय भाषाओं में इसे धोती के अलावा कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। धोती को बांग्ला में धुती, मराठी में धोतर, तमिल में वेष्टी, मलयालम में मुन्दू, तेलगु और कन्नड़ में पंचा/पंचे भी कहते हैं।

अपने देश में वस्त्र का प्रचलन अति प्राचीन काल से है। सिन्धु घाटी की सभ्यता की खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ अलंकृत वस्त्रों से सज्जित हैं। भारतीय लोग मुख्यतः कपास से बने वस्त्र पहनते थे जो स्थानीय कपास से बनाए जाते थे। भारत उन गिनी-चुनी संस्कृतियों में से है जहाँ 2500 ईसापूर्व और शायद उससे पहले भी कपास की खेती की जाती थी। भारत में पुरुष भी मुन्दु के रूप में जाना जाता रहा है। ये कपड़े की शीट की तरह लंबे, सफेद हिंदेशियन वस्र पहनते थे।

प्राचीन भारतीय परिधान के अवशेष सिन्धु घाटी की सभ्यता के स्थानों से प्राप्त हुए हैं। यह शिलाओं पर काटकर बनाई गयी मूर्तियों पर हैं। गुफाओं में बने चित्रों में हैं। मंदिरों और अन्य स्मारकों में निर्मित मानव चित्रकलाओं में भी हैं। इनमें ऐसे वस्त्र देखने को मिलते हैं जिन्हें शरीर पर लपेटा जा सकता है।साड़ी, धोती, पगड़ी आदि का उदाहरण लिया जाए तो लगता है कि पारंपरिक भारतीय परिधान अधिकांशतः शरीर पर लपेटे या बांधे जाते थे।
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